एक यादगार शादी की दावत!!!
दोस्तों शाम होने से पहले अच्छी खासी बारिश चल रही है और मेरे जैसे इंसान घर पर चुपचाप बैठना बड़ी मुस्किल है । फिर भी मन में ख्याल आया की बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं हूं । कुछ लिखने की कोशिश करते हैं । इतने में बड़ी बेटी की फोन आया हाल चाल पूछी । स्पीकर अन करके बातें हुईं पास में मेरी हम सफर, और छोटी बेटी मौजूद थी । अच्छी टाइम पास हो रही थी । अभी के जमाने में एक बेटी की शादी में दावत की खर्च पर बातें हुईं । करीबन 6/7 लाख सिर्फ खाने में खर्च होना तय है । हमारे यहां मटन किलो 700 रुपिया है ।2/3 क्विंटल मटन, फिर करीबन एक क्विंटल चिकन, सादा सब्जी, खीर और भी बहुत कुछ दावत में अपनी शान बढ़ाने के लिए किया जाता है । ताकि बरसों महेमानो को दावत याद रहे । तो उस समय मुझे शायद 50 शाल पुराना एक बेटी की शादी की दावत याद आ गई । मैंने जो आंखों देखा हाल अपनी बेटियों को सुनाया । दोनो बेटी और मेरी बीबी हस हस कर लोटपोट हो गई और मुझे कुछ लिखने को मुद्दा मिल गया , मैं ये सच्ची घटना लिखने बैठ गया । बात उस समय की है जब मैं 16/ 17 साल का था । भवानी पटना एक मुहब्बत और भाई चारे की सहर है । सुख, दुख जो भी हो सब रिश्तेदार, करीबी, और आस पास के लोग सामिल हो कर निपट लेते हैं । वैसे ही एक सक्स ने मई महीने की भरी गर्मी में अपनी बड़ी बेटी की शादी की । सहर के मुस्लिम, गैर मूसली, अपने दोस्त, रिश्तेदारों को शादी की दावत थी । दिन में शादी थी । जवाल के बाद बारात आई । सायद दिन के 1बजे निकाह हुई । गर्मी की मौसम उस जमाने में कूलर नहीं थी । भीड़ इतनी ज्यादा थी की सभी लोग गर्मी से परेशान थे । दुल्हन वालों के और से सादा पानी ओर फीकी मिठी सरबत पेस की गई । तमाम लोग प्यास के मारे जैसे भी हो शरबत पिया । कुछ वक्त गुजरा । दुल्हन के वालिद (बाप ) भरी महेफिल में खड़े हो कर सभी को बोला आप सभी लोगों का दिल से शुक्रिया अदा कर रहा हूं क्यों की इस भरी गर्मी में आप सभी लोगों ने पूरे परिवार के साथ मेरी बेटी की शादी में सामिल हुए । सिर्फ दूल्हा वालों को खाने की इंतजाम किया है । बाकि दुल्हन घर की और से जितने मेहमान आए हुए हैं अपनी अपनी घर जा सकते हैं । चारों ओर खामोशी , उस समय सिर्फ रिक्शा की आसरा थी । सभी लोग जितने आयेथे एक दूसरे को देखने लगे । मैं भी सामिल था । वहां से धीरे धीरे एक दूसरे को देख ते हुए अपनी अपनी घर की और निकल पड़े । आए हुए औरतें , बच्चे, बुजुर्ग जितने भी थे गर्मी से बचाने की कोशिश करते हुए 3/4किमी पैदल भूखा पेट अपनी घर की और निकल पड़े । फिर सभी ने अपनी अपनी घर पर खाना बना कर खाया । मैंने होटल में डेढ़ रुपिया खर्च कर एक हाफ मिल खाया । वैसे उस सक्स ने ठीक किया या गलत मेरी सोच के बाहर है । आज पचास साल बाद बातों बातों में ये यादगार एक बेटी की शादी की दावत याद आ गई शायद आप सभी को पसंद आए । जिन्दगी में ऐसे बहुत से पल सामने से गुजर जाते हैं जो मरते दम तक भुलाई नहीं जा सकती ।सायद इस घटना बहुत लोग भूल गए होंगे या दुनियां छोड़ चुके होंगे पर जो हैं तो इसे जरूर याद करेंगे।
महम्मद अल्ली, वरिष्ठ पत्रकार, कालाहांडी , उड़ीसा।
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