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"पिता का रोना"


"पिता का रोना" शीर्षक सभी को थोड़ा मूर्खतापूर्ण लग सकता है, लेकिन आज के समाज में इसका बहुत महत्व है। एक पिता वह होता है जो अपने बच्चों की खुशी और समृद्धि के लिए सब कुछ कर सकता है। उसका बेटा एक महान व्यक्ति हो दुनिया में। पिताजी भूल जाते हैं,की नाक के ऊपर तक पानी आ जाने पर  किंग खान या हिंदी फिल्म जगत के प्रसिद्ध नायक शाहरुख खान जैसे ब्यक्ति के जुबान से कई कठोर  शब्दों की बारिश करते हैं ।जैसा मेरे बेटा को जिसने भी झूठा आरोप लगाया है उसे मैं चैन से सांस लेने नहीं दूंगा ।ऐसे सब्द एक पिता की अपने बेटे पर बे पनाह मोहब्बत का असर है । एनसीबी की टीम अब तक शाहरुख खान के बेटा आर्यन खान समेत  19लोगों को  ड्रग सेबन की जुर्म में गिरफ्तार कर चुकी है ।क्रूज की रेभ  पार्टी में 1,500 करोड़ रुपये की खर्च कर के मौज मस्ती और ड्रग सेबन में मशगूल थे शाहरुख खान के  बेटे आर्यन खान अपने दोस्तों की महफ़िल के साथ । ऐसे नालायक बेटा  या तो हाई-प्रोफाइल लाइफस्टाइल या फिर अपने पिता शाहरुख खान के  दौलत, या फिर दुनिया में पिता की स्वतंत्र परिचय या ज्यादा लोकप्रियता की नतीजा है।

               एक पिता या धनी कुबेर का धनी पुत्र हो या चाहे कितना भी गरीब क्यों न हो, अपनी पुत्र को  समाज में सबसे बड़ी सुख, सुविधा और अच्छा और बड़ा इंसान बनाने के लिए दिन-रात एक करता है।शाहरुख खान भी एक मध्यमवर्गीय परिवार के सदस्य थे। पर वह अपने महेनत और लगन की वजह से आज फिल्मी दुनिया के बेताज बादशाह हैं। वह दुनिया के दूसरे सबसे अमीर सिनेमा कलाकार हैं  जिनके पैरों के नीचे जीवन के सभी सुख हैं। धनकुबेरे के पिता, निश्चित रूप से, अपने बेटों की सभी खुशियों के लिए खुलेहात से,तन मन और धन से सबकुछ लुटा बैठते हैं  और पुत्र पिता की उम्मीद को साकार करने के बजाय एक समय ऐसा आता है कि पिता की सोहरत, इज्जत और जिंदगी भर की तपस्या मिट्टी में मिल जाती है। क्यों कि पिता  हाई प्रोफाइल सोसाइटी, या सोहरत इज्जत की चक्कर में अपने पुत्र पर अपना नियंत्रण खो देता है, जो पहले से ही पश्चिमी सभ्यता का आदी हो चुका है, और पुत्र पर अपना नियंत्रण खो देता है । पिता उस वक़्त बन्द कमरे में  रोता है जब पुत्र उसके लिए कलंक बन जाता  है।  "जब वह ड्रग्स के साथ पकड़ा जाता है तो सब कुछ खत्म हो जाता है, और अपने बेटे को कानून के जाल से असहाय रूप से बचाने के बजाय, वह अपने बेटे के अपराध और अपनी कमजोरी के बारे में सोचने के बजाय रोता रहता है ।और यह आरोप लगता है ब्यबसाय कि दुश्मनी और कुछ अन्य वजह से लोग उनकी बेटा को झूठे आरोप में फंसा दिया है ।

              सिर्फ शाहरुख खान ही नहीं बल्कि आज के आधुनिक समाज में हर वो बाप जो  जिंदगी की लड़ाई में दुःख, भूक ,अभाव के साथ जूझते हुए अपनी मेहनत और लगन से  अपनी प्रतिभा के बलबूते पर समाज में स्थापित होते हैं और धन के साथ-साथ समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं, और सभी खुशियों के जादू उनकी मुठ्ठी में  आते हैं।  एकसमय  ऐसा आता है की खुद  हाई-प्रोफाइल संस्कृति को अपनाने के साथ वह और उसका परिवार हाई-प्रोफाइल जादू का शिकार हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण अपार धन प्राप्त करने के बाद अपनी संस्कृति, परंपरा को भूल जाना होता  है। अपनी हाई-प्रोफाइल संस्कृति के बावजूद, उनका बेटा खराब संगत से निकम्मा नालायक, चरित्रहीन बन जाता है । भले ही दुनिया इसके बारे में सब  जानती हो पर पिता या उसके परिबार सब जानते हुए भी अनजान बनकर खामोसी अख्तियार कर लेते हैं । केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजीत मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा एक शक्तिशाली मंत्री  के बेटा हैं। पिता की इज्जत, रुतवा या दौलत का नशा उसके सर चढ़कर बोलता है ।  कोई कानून या व्यवस्था की डर या खौफ नही उसे क्यों कि उसके पिता एक ताकतवर मंत्री हैं ।  इसी घमंड में चूर बेटा   आंदोलनकारी किसानों के ऊपर गाड़ी चढा देता है और ९ लोगों की मृत्यु हो जाती है । ऐसे  बेटे के कुकर्मों के लिए कौन जिम्मेदार है? उसका अपना बेटा या पिता जो सत्ता में  अंधा  घमंड या अपने बेटे को पिता की दौलत का नशा ।अपने बेटे को संस्कार,  और अनुशासन नहीं सिखा पाया है जो पिता वह आज देश की केंद्रीय मंत्री है। एक आम बात हो गई है आजकल की नेता, मंत्री, संसद हो या बिधायक अपने नालायक बेटा को अपनी उत्तराधिकारी मान बैठते है और ये जानते हुए की उसका बेटा नालायक है उसे राजनीति में लाने के लिए एड़ी चोटी की जोर लगा देता है ।वही समय होता है एक पिता  अपनी पारिबारिक सत्ता के मोह को सार्थक करने के लिए मजबूर हो जाता है औरअपनी गलतियों के सामने असहाय होता है, और जब पिता असहाय हो जाता है, तो वह अंधेरे में अकेले रोने पर मजबूर हो जाता है । उस समय प्रायश्चित या स्थिति को नियंत्रित करने में असमर्थ, बेबस  हो जाता  है।

         जीवन में, धन, शक्ति और यौवन, सोहरत, कामियाबी, सदा साथ नहीं देते।दिन व दिन परिस्थितियों ठीक होने की  लाख कोसिस करने के बावजूद वे अपने दुख में डूब जाते हैं और उन्हें अपने   नाकामियाबी और पिता होने के नाते  विफलता का अनुभव करते हैं।  उस समय, "पिता के रोने" को सुनने वाला कोई नहीं होता । यह कहना गलत नहीं होगा  कि अपने बच्चों को सही परवरिस और संस्कार या  देखभाल करना आज की दुनिया में एक पिता के लिए कितना महत्त्वपूर्ण होता है ।  कई पिता ऐसी मुश्किल स्थिति से गुजरे हैं। अपनी प्रतिष्ठा  इज्जत पर दांव लगाते हुए, और बाद में ढलती उम्र में, उसके पास रोने के अलावा कुछ भी नहीं बचता । केवल "पिता की कराह", लेकिन उस समय उनके पास उनकी दर्द सुनने वाला या आंसू पोछने वाला  कोई नहीं है।

            

      

मोहम्मदअलीखान

बरिष्ठ पत्रकार

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