मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ आज अस्त-व्यस्त है।ये कितना सही है या गलत इसपर आंकड़ो के साथ अपनी बिचार रखने की निस्पख्य कोसिस की है ।सायद कुछ लोगों को बुरा भी लग सकता है पर "सचाई छुप नहीं सकती बनावट की वसूलों से और खुसबू आ नहीं सकती कभीभी कागज के फूलों से"।आज देश की स्थिति क्या है सभी देशवासियों को अच्छी तरह मालूम है ।पर देश के मीडिया से जुड़े लोगों की हालात कैसा है सायद आम आदमी को मालूम नहीं।
देश आज आजादी की 75 वां जश्न मना रहा है ।सभी की दिल मे एक नई उन्माद है ।हम सिर्फ और सिर्फ स्वतन्त्रता दिवस पर ही आजाद होने की खुसी मना लेते हैं और शाल के बाकी के दिन अपनी दुनियां में खो जाते हैं ।पिछले सात साल में मीडिया से जुड़े पत्रकार बंधु और लेखक, बुद्धिजीवि समेत सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों के साथ इतना देशद्रोह मामला दर्ज किया गया जो देश में कभी नहीं हुआ ।फिर भी हम ऐसे चुप्पी साधे हुए हैं कि जैसे गुलामी की जंजीर से जकड़े हुए हैं ।सरकार आएगी और जाएगी भी यही लोकतंत्र की प्रक्रिया है ।देश को सरकार अपनी बिचारधारा और लोगों की कल्याण के लिए समर्पित भावना से और निस्पख्य होकर काम करना लोकतंत्र का धर्म होता है ।सरकार की अच्छाई की तारीफ करना और सरकार की गलती सुधारने के लिए मीडिया की जिम्मेदारी होती है ताकि देश के आम आदमी को अपनी हक मिल सके ।यही मीडिया की कर्तब्य भी बनता है ।सरकार, प्रसासन और न्यायपालिका के साथ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ भी बहुत अहमियत रखता है ।लोकतंत्र के ये चारों स्तम्भ के आपसी तालमेल के बगैर लोकतंत्र खतरे में पड सकती है ।
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। स्वतंत्रता के 75 वर्षों के दौरान, देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार (2014-2021) ने मीडिया को असतब्यस्त कर दिया है।आज की तारीख में हालात ये है कि मीडिया पर लगातार आक्रमण के कारण देश की लोकतंत्र ब्यबस्था चकनाचूर होते दिख रही है और देेश तानासाही की ओर बढ़ते दिख रही है । मीडिया के लिए सरकार के नए सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम-2020 दिशानिर्देश मीडिया, वेबमीडिया, ओवर-द-टॉप और सोशल मीडिया की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते दिखाई देते हैं।'' भारत सरकार को संयुक्त राष्ट्र की और से इसे लागू न करने की सुझाव की पर भारत सरकार ने इसे अनदेखी कर दिया ।संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ''इसे लागू करना लोकतंत्र के लिए खतरा बन गया है।'
आज देश का मीडिया दो हिस्सों में बँटा हुआ है।सरकार की विभाजनकारी नीतियों के कारण एक समूह ने सरकार और सरकार का पक्ष खो दिया है, और सरकार अपनी तटस्थता और कर्तव्य की भावना खो चुकी है। उत्तर प्रदेश में, चार लोगों ने पीटा अब्दुल समद को और उनकी दाढ़ी काट दी और उन्हें "जय श्रीराम" कहने के लिए मजबूर किया। इसे सोशल मीडिया पर शेयर करने पर मसहूर बालीवुड अभिनेत्री स्वरा भास्कर समेत तीन पत्रकारों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया । कृषि कानून के विरोध में दिल्ली में चलरहे किसान आंदोलन की न्यूज रिपोरिंग करने पर 8 पत्रकार को दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह अपराध लगा कर गिरफ्तार कर लिया ।
पर्यावरणविद ग्रेटा थानबर्ग ने किसान आंदोलन के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक टूलकिट पेश किया, जिसे न साझा किया "फ्राइडे फॉर फ्यूचर इन इंडिया" की संस्थापक बेंगलुरु की रहने वाले दिशा रवि ने ।आश्चर्य की बात है कि उन्हें दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
प्रख्यात पत्रकार पद्मश्री बिनोद दुआ पर YouTube पर प्रधानमंत्री की वोटिंग शैली की आलोचना करने के बाद उनके नाम पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया । माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और मामले को खारिज कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने देशद्रोह के मामले को यह आरोप लगाते हुए खारिज कर दिया कि यह एक हमला था मीडिया पर। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण पत्रकार को बरी कर दिया गया था।आंध्र प्रदेश के दो न्यूज चैनल ने वाईएसआर कांग्रेस के एक सांसद की बक़तब्य प्रसारण करने के मामले में दो न्यूज चैनल पर दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह के मामला दर्ज किया ।इसे सर्बोच न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये गणतंत्र पर हमला है ।पश्चिम बंगाल के कुछ तृणमूल कांग्रेस के बिधायक घुस लेते पत्रकार ने स्टिंग ऑपरेशन किया तो उन्हें भी देशद्रोह अपराध में गिरफदार किया गया जिसे देश के सर्बोच न्यायालय दखल देकर खारिज किया ।
कोबिद--१९ की रिपोर्टिंग करने पर 25 मार्च से 31 मई के बीच देश में 55 पत्रकारों को हिंसा, धमकी, उत्पीड़न और गिरफ्तारी या कारण बताओ नोटिस के किया गया था । मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार (2014-2021) के पिछले सात वर्षों के दौरान, 200 ऑन-ड्यूटी पत्रकारों पर हमला किया गया है और 40 पत्रकारों की हत्या की गई है।इस मामले में अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्यबाही नहीं कि गयी ।जिसे फ्रीडम हाउस नामक एक एजेंसी ने खुलासा किया।
न केवल पत्रकार बल्कि 405 बुद्धिजीवियों और लेखकों पर भी देशद्रोह का आरोप लगाया गया है।
भारत दुनिया में पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में से एक है। "रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स अपने रिपोर्ट में कहता है कि भारत दुनिया के 180 देशों में से 142 वें स्थान पर है।"
देश में मीडिया पर लगातार हो रहे हमलों ने संकट में पड़े लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की रक्षा करने के लिए लोकतंत्र-प्रेमी ,व्यक्तियों, बुद्धिजीवियों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी बढ़ा दी है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कि असतब्यस्त हालात को सुरक्षा देने के लिए आम लोगों की आवाज उठाने की समय की आवाज है,साथ ही साथ देश के तमाम पत्रकार बंधुओं को एकजुट होकर इस मुश्किल की घड़ी में आगे बढ़ने की समय की पुकार है , ताकि देश की मीडिया को दुर्दशा से बचाया जा सके, वरना स्थिति और भी खतरनाक हो जाएगी और लोकतंत्र को खतरे में डाल देगी।
शुभ रात्रि
मोहम्मद अली खां
बरिष्ठ पत्रकार, कालाहांडी, ओडिशा ।
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