आजादी के पहले कालाहांडी एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था ।यहां के हिज हाइनेस राजा अपने राज्य के बिकाश के लिए बाहर राज्यों से कामगार, किशान, मेकेनिक, और सभी बर्ग के लोगों को लाकर बसाते थे ।इस स्वतन्त्र राज्य एक बिकाश शील राज्य था ।यहां 1936 में स्ट्रीट लाइट जलतिथि उसके लिए एक स्वतंत्र बिजली घर निर्माण किया गया था ।मेरे परदादा कालाहांडी राज्य के पहले डॉक्टर थे ।उन्हें तत्कालीन महाराजा कटक से लेकर आये थे और वो यहां स्थायी रूप से बस गए ।ये इतिहास में बाद में कभी लिखूंगा ।फिलहाल एक दर्द भरी सच्ची घटना के बारेमे आप लोगों के सामने पेस कर रहा हूं ।उन दिनों बर्तमान के पाकिस्तान से जमाल खान नामक ब्यक्ति काम धंदा की तलाश में संबलपुर आते हैं ।वहां कुछदिन काम करने के समय उनसे एक विधवा मुस्लिम से मुलाकात होती है जिनके एक बेटा भी था और उनका नाम शेर महम्मद था ।जमाल खान ने उन बिधबा महिलासे निकाह करलिया ।फिर पश्चिम उड़ीशा के उस जमाने के सबसे उन्नत और खुशहाल राज्य कालाहांडी के राजधानी भबनिपटना चले आये और यहां स्थायी रूप में बस गए ।यहां उनके चार बेटा और एक बेटी जन्म लिए ।यहीं पर पढ़े लिखे, बड़े हुए । यहां शेर महम्मद की भी शादी हुई ।उनके चार बेटे उस्मान खान, सरवर खान,नूर खान, अनवर खान, और बेटी नूरी ।इन्हींके साथ एक खुशहाल जीवन जी रहे थे ।१९४७ अगस्त१५ को देश अंग्रेजों से आजाद हुआ ।और हमारा राज्य भी आजाद हुआ ।आजादी के दो शाल हमने हिज हाइनेस महाराजा के शासन के अधीन रहे ।बादमें देश के कालाहांडी जैसे १०२ छोटेबड़े राज्य का मिश्रण प्रक्रिया सुरुहूआ ।कालाहांडी महाराजा ने अपने राज्य का मिश्रण में दस्तखत किए और हम १९४९ नभेम्बर को देश और ओडिशा राज्य के एक जिला के तौर पर मान्यता प्राप्त किया ।उधर भारत ओर पाकिस्तान भी बिभाजन होकर पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता प्राप्त कर लिया ।किसे मालूम था ये आजादी और भारत- पाक बिभाजन अनेक परिबारों को दर्दनाक बिभाजन की कगार पर ला के रख दिया ।जमाल खान के परिबार सहरके बाजार पाडा स्थित हमारे घर में ही किराये पर रहते थे ।उस्मान, सरवर, अनवर और नूर चाचा मुझे गोद मे लेकर बहुत घुमाते थे ।उस समय सहर में आबादी एक दम कम थी ये कोई पंद्रह हजार के आस पास ।सहर के हर एक इन्शान प्रेम, भाईचारा , और खुशहाल जीवन जी रहाथा की बिभाजन ने जमाल खान को अपनी मिट्टी ने पुकारा ।जमाल खान ने अपने बीबी से स परिबार पाकिस्तान जाने की बात कही1 ।उन्होंनेकहा चलिए चलते हैं देश बिभाजन हो चुका वहां हमारी जमीन, घरद्वार सब है अपने देश चलेंगे ।पर यहां हर किसीको अपनी मिट्टी से प्यार था ।बिबिने कहा1 में अपनी वतन छोड़ कर नहीं जाने वाली आप को जाना है तो जाइये ।मेरे पांच बच्चे बड़े हो चुके हैं कामकाज करते हैं उन्हें देखकर मैं जी लुंगी । आखिर में हर एक को अपनी मिट्टी कि मुहब्बत ने ऐसा प्यार दिया कि जमाल खान अपने सगे दो बेटे सरवर और नूर खान को लेकर अपनी वतन पाकिस्तान चले गए ।इधर एक खुद्दार, बीबी सुहाग रहते फिरसे बेवा बनकर अपने तीन बेटे शेर महम्मद,उस्मान खान और अनवर खान और बेटी नूरी के साथ भबनिपटना मे रह गई । भारत -पाक बिभाजन ने मियां- बीबी और उनसे जन्मे औलादों को भी बिभाजित कर दिया पर मिट्टी की मोहब्वत और प्यार ने कई अंगड़ाई ली ।अपने माँ, भाई बहन से बिछड़कर बाप के हिस्से में पड़े सरवर और नूर चचा को अपने देश, वो हवा, मिट्टी की खुश्बू, भाई, बहन की खून ने ऐसा खिंचा की दोनों भाई कईबार अपने पिता को छोड़ कर माँ और भाई बहन के पास अपनी वतन आ गए ।पर कानून उन्हें इजाजत नहीं दिया ।क्यों कि बाप ने बिभाजन के समय दो बेटों के साथ लिए अपनी बीबी से बटवारा जो कर लिया था ।सरवर चाचा और नूर चाचा १९६२ मसीहा के अंदर सैयद ४/ ५ बार अपने माँ और भाई बहन के पास चले आये और जब भी उनकी भारत में रहने कि तारीख चली जाती वो दो भाई कहते हम अपने माँ भाई के पास रहेंगे ।हम यहां जन्म लिया पले, बढ़े ये ही हमारी जन्म भूमि है ।पर उनकी बात कोई कैसे सुने ।बार बार उन दोनों भाइयों को पोलिस प्रसासन पकड़ लेती और पाकिस्तान बार्डर पर छोड़ आती ।आखिर वो दोनों भाई पाकिस्तान में बसगये ।यहां से दोभाई उस्मान और अनवर चाचा खोरधा जिल्ला में बस गए घड़ी मेकेनिक की काम किया ।वहीं शादी कि ।वहां उस्मान चाचा की इन्तेकाल हुआ और छोटे भाई अनवर फिरसे अपने बाल बच्चों के साथ अपनी जन्मभूमि भबनिपटना में आ बसे अपने2बड़े भाई शेर महम्मद के पास ।यहीं तीनो भाई , बहन नूरी और माँ अपने ही जन्मभूमि के कब्रस्तान में अपनी आखरी घर कर लिया ।उधर पाकिस्तान में बाप के मरने के बाद दो भाई अपनी जिंदगी नए सिरे से चलाने लगे ।कुछ सायद १० साल पहले नूर चाचा अपनी वतन भबनिपटना आये थे ।गांधी चौक में एक नया इंसान को देख मुझे कुछ खिंचाव महसूस हुआ ।हूबहू अपने छोटे भाई अनवर जैसे चेहरा, वही चाल ढाल कुछ अपने पुराने मित्रों , बचपन के साथी से मिलने जुलने का सिलसिला चलता था ।हम भबनिपटना छोड़ सायद ५५साल से अधिक हुए अपनी खेती गाओं जो सहर से मात्र ८ किमी दूरी पर है वहीं रहते हैं उन्होंने भी मुझे बार बार घूर घूर के देख रहे थे ।फिर एक दिन शाम के वक़्त गांधी चौक पर उनसे मुलाकात हुई ।उन्होंने मुझे सलाम किया और पूछा आप महम्मद अली हो तो मैने हां कहा ।उन्होंने मुझे भारी बाजार में कस के पकड़ लिया और गले लगा लिया और कहा मुझे पहचाना तो मैं अनवर चचा का नाम लेकर कहा कि आप उनके जैसे दिखते हैं । तो उन्होंने नम आंखों से मेरी बचपन की दास्तान, यहां के उनकी बचपन की मस्ती और जवानी की कुछ प्यार भरी यादों को ताज़ा किया ।जवानी में नूर चाचा ने अपना प्यार भी खोया ।वो यहांके भवानी टाकीज में बतौर ऑपरेटर काम करते थे ।यहां से जाने के बाद अभिके बांग्ला देश मे भी बतौर सिनेमा हाल में ऑपरेटर काम किया ।और यहां पर बसे अपने बाकी भाई घड़ी मेकेनिक के तौर पर काम कर रहे हैं ।जो तीन पीढ़ी से चली आ रही है ।नूर चचा से मुलाकात में उन्होंने मेरे अब्बू, अम्मी और बाकी भाई बहन के बारे में पूछा ।वो जब पाकिस्तान गए तो हम दो भाई बहन थे ।उन्होंने बाकी भाई बहनों के बारे मैं पूछा ।अब्बू अम्मी से मिलने की इच्छा जाहिर की ।मैने भी उन्हें घर आने की दावत दी ।कुछ दिन के बाद नूर चचा मेरे गाओं आये, अम्मी अब्बू से मिले पुरानी यादे ताज़ा की ।हर एक कि आंखों में नमी थी ।हर एक अपना आंसू छुपाने की कोसिस कर रहे थे । उस वक़्त नूर चाचा ने मेरे अब्बू से कहा भया महम्मद अल्ली बचपन में जैसा था वैसे ही है खुस मिज़ाज़ , चेहरा भी बदला नही में तीन चार दिन से उसे गांधी चौक में देख रहा हूँ पर में उसे अपने से पूछ लिया की आपमहम्मद अल्ली हो .....उस समय मे्रे जबान कुछ इस तरह मचलने लगे और अपने आप निकल पड़े " एक दिल के टुकड़े हजार हुए कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा "। भारत- पाक बिभाजन के बाद कि ये दर्द नाक और मिट्टी से जुड़े हुए एक हादसा को सायद अनेक भुल गए हैं पर मुझे कभी कभी दिल में एक टिस सी लगती है कास येमेरा मिट्टी के दो टुकड़े न हुए होते तो अपना खून, जिगर, परिबार न बिछड़ते । बिभाजन से बिछड़ने की हादसा तो अनेक हैं पर मियां- बीबी की बिछड़ना और एक ही खून की चार भाई का बटवारा होना एक अनहोनी बात थी ।
यहां हर किसी को अपनी अपनी मिट्टी और रिश्तों से प्यार था ।बिछड़ना पसंद था पर मिट्टी की खुश्बू और प्यार की एक बेमिसाल वाकिया आज भी मेरे दिल में ताजा है ।जाते वक्त नूर चाचा ने कहा था इंशा अल्लाह अग़र माहौल ठीक रहा और भिसा मिला तो में पूरे परिबार के साथ घूमने आऊंगा ।मेरे बच्चे, बहु नाती पोती पोता को मेरा जन्मभूमि कि दर्शन और यहां के खूबसूरति दिखाऊंगा सायद आज के माहौल उनकी तमन्ना पूरी नही कर पा रहीं है ।यहां बसे उनकि अन्य भाई के बेटे बेटी आज भी अपने खून को याद किया करते हैं ।
महम्मद अल्ली,
मुख्य संपादक, "तर्जमा"
Beautifully narrated
ReplyDeleteHeart 💖 touching
ReplyDeletePost a Comment